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सरकार ने कश्मीर प्रेस क्लब के कैंपस को लिया अधिकार क्षेत्र में, पढ़ें

जम्मू और कश्मीर से बड़ा खबर सामने आई है। जम्मू और कश्मीर के प्रशासन ने सोमवार को कश्मीर प्रेस क्लब के कैंपस को अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया। पिछले हफ़्ते जम्मू और कश्मीर के पत्रकारों के सबसे बड़े संगठन में बयान बाजी हुई।

By RNI Hindi Desk 
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विदेश:  जम्मू और कश्मीर का नाम सुनते ही हमारे मन और दिमाग में एक सुंदर आकृति बनने लगती है। जम्मू-कश्मीर में बर्फबारी का सिलसिला जारी है। कई ऊंचे इलाकों में बर्फबारी के कारण जनजीवन अस्तव्यस्त है। कश्मीर से उत्तराखंड तक जगह-जगह हाईवे बंद हैं। वही इस बीच जम्मू और कश्मीर से बड़ा खबर सामने आई है। जम्मू और कश्मीर के प्रशासन ने सोमवार को कश्मीर प्रेस क्लब के कैंपस को अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया। पिछले हफ़्ते जम्मू और कश्मीर के पत्रकारों के सबसे बड़े संगठन में बयान बाजी हुई।

सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया है, “पत्रकारों के अलग-अलग गुटों के बीच अनबन और अप्रिय घटनाओं को देखते हुए ये फ़ैसला लिया गया है कि कश्मीर प्रेस क्लब को श्रीनगर में आवंटित किए गए पोलो व्यू कैंपस की ज़मीन और उसमें स्थित इमारत का नियंत्रण संपत्ति विभाग को वापस दिया जा रहा है।

चूंकि प्रेस क्लब की इमारत सरकार ने अपने नियंत्रण में वापस ले ली है, इस संस्था के 300 से अधिक सदस्यों में परेशानी है। कई पत्रकारों ने सरकार की मंशा पर सवाल भी उठाए हैं।

एक पत्रकार ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर बताया, “स्वतंत्र पत्रकारों के लिए ये इकलौती जगह थी, जहां हमें पनाह मिलती थी।”

16 जनवरी को पत्रकारों के एक समूह ने कश्मीर प्रेस क्लब के दफ़्तर पर धावा बोला और क्लब का नियंत्रण जबरन अपने हाथों में ले लिया था। इसके बाद कश्मीर के पत्रकार सदमे में और डरे हुए हैं। वे लोग सोमवार को कश्मीर प्रेस क्लब के बाहर इकट्ठा हुए।

कश्मीर के बाहर सक्रिय नौ पत्रकारों ने एक साझा बयान में कहा, “कोरोना संक्रमण के बढ़ते हुए मामलों को देखते हुए 15 जनवरी को जब प्रशासन ने हफ़्ते भर के लिए लॉकडाउन लागू करने का एलान किया तो पत्रकारों के एक समूह ने प्रेस क्लब के दफ़्तर में मौजूद सदस्यों को बंधक बनाते हुए क्लब का नियंत्रण बलपूर्वक अपने हाथों में ले लिया। पूरी तरह से इस अवैध और निंदनीय कदम के लिए पहले से ही बड़ी संख्या में पुलिस बलों और अर्धसैनिक बलों को वहां तैनात किया गया था।”

सरकार के बयान में आगे कहा गया है, “कश्मीर प्रेस क्लब की वास्तविक स्थिति ये है कि एक रजिस्टर्ड संस्था के तौर पर इसका और इसकी प्रबंध कमेटी का अस्तित्व 14 जुलाई, 2021 को ही क़ानूनी रूप से समाप्त हो गया था। उसी दिन इसका कार्यकाल ख़त्म हो गया था।”

“सेंट्रल सोसायटीज़ ऑफ़ रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन कराने में नाकाम रहने के अलावा नई प्रंबध समिति के गठन के लिए चुनाव कराने में भी केपीसी नाकाम रही. पूर्ववर्ती क्लब से जुड़े कुछ लोग अवैध गतिविधियों में लिप्त थे। इनमें एक ये भी था कि वे खुद एक ऐसी संस्था का मालिक और प्रबंधक बता रहे थे जो क़ानूनी रूप से अब अस्तित्व में नहीं है।”

 

बयान में कहा गया है कि कुछ सदस्यों ने इसी नाम से एक और संस्था खड़ी कर ली थी। इससे ऐसा लग रहा था कि केपीसी अब उनके अधीन हो गई हो।

“चूंकि वास्तविक कश्मीर प्रेस क्लब का अस्तित्व एक रजिस्टर्ड संस्था के रूप में ख़त्म हो गया है तो ऐसे में किसी अंतरिम संस्था की बात बेमानी हो जाती है। इन हालात में पूर्ववर्ती कश्मीर प्रेस क्लब के नाम का इस्तेमाल किसी समूह द्वारा किया जाना ग़ैरक़ानूनी है।”

कश्मीर प्रेस क्लब को स्थानीय प्रशासन के खुले समर्थन से कुछ पत्रकारों द्वारा ‘एकतरफ़ा और अवैध तरीके से’ नियंत्रण में लिए जाने के मुद्दे पर कई कश्मीरी पत्रकारों ने नाराज़गी जाहिर की है। कश्मीर प्रेस क्लब के निर्वाचित पदाधिकारियों ने इस कदम को एक ग़लत और ख़तरनाक नज़ीर बताया है।

बहुत से लोगों का ये भी कहना है कि कश्मीर प्रेस क्लब को बंद किया जाना कश्मीर में स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता पर की जा रही बड़ी कार्रवाई का हिस्सा है।

कश्मीर के स्वतंत्र पत्रकार आकाश हसन ने बीबीसी को बताया, “इस क्षेत्र में जहां मीडिया और पत्रकारों पर सरकारी दबाव अभूतपूर्व रूप से बढ़ गया था, पत्रकारों के अधिकारों की रक्षा के मामले में ये क्लब एक बेमिसाल संस्थान की तरह था।”

 

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