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हम तीव्र विकास से स्थिर विकास की ओर बढ़ेंगे तो ऐसे में अमेरिका की अर्थव्यवस्था थोड़ी नीचे आती दिखेगी: राष्ट्रपति जो बाइडन

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि हम तीव्र विकास से स्थिर विकास की ओर बढ़ेंगे तो ऐसे में अमेरिका की अर्थव्यवस्था थोड़ी नीचे आती दिखेगी। ये भगवान की इच्छा है लेकिन मुझे नहीं लगता है कि हम मंदी के दौर में जा रहे हैं।

By RNI Hindi Desk 
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अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि हम तीव्र विकास से स्थिर विकास की ओर बढ़ेंगे तो ऐसे में अमेरिका की अर्थव्यवस्था थोड़ी नीचे आती दिखेगी। ये भगवान की इच्छा है लेकिन मुझे नहीं लगता है कि हम मंदी के दौर में जा रहे हैं। आपको बता दें कि दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शुमार अमेरिका और चीन पर मंदी की मार की आशंका गहराती जा रही है।

पहल से ही मंदी मार झेल रहे एशियाई देश भी इस मंदी की चपेट में आ सकते हैं। ब्लूमबर्ग की ओर से दुनिया के अर्थशास्त्रियों के बीच कराए गए एक सर्वे में दावा किया गया है कि भारत को छोड़कर दुनिया के ताकतवर देश मंदी की चपेट में आ सकते हैं।

सर्वे के मुताबिक, चीन में मंदी आने की आशंका 20 प्रतिशत है, अमेरिका में 40 प्रतिशत वहीं यूरोप में 50 प्रतिशत आशंका व्यक्त की गई है. इस सर्वे के अनुसार अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि महंगाई पर काबू पाने के लिए दुनिया के केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में इजाफा कर रहे हैं जिससे मंदी की आशंका बढ़ गई है।

इस सर्वे में दावा किया गया है कि श्रीलंका  इस बार मंदी की मार से बुरी तरह से प्रभावित होगा। इस बात की आशंका व्यक्त की गई है कि श्रीलंका या तो इस साल के आखिर में या फिर अगले साल की शुरूआत में मंदी की मार झेल रहा होगा। इसकी 85 प्रतिशत आशंका व्यक्त की गई है।

तो वहीं इससे पहले कराए गए एक सर्वे  में श्रीलंका के मंदी में फंसने की आशंका 33 प्रतिशत व्यक्त की गई थी। भारत भी झेल चुका है मंदी का ताप भारत के संदर्भ में बात करें तो आजादी के बाद हमारे देश पर अब तक 2 बार मंदी की मार पड़ी है।

भारत ने पहली बार भयानक आर्थिक संकट का सामना किया 1991 में. उस समय भारत की स्थिति की सही तस्वीर समझने के लिए अभी के श्रीलंका का उदाहरण देख सकते हैं 1991 में आए संकट के कारण आंतरिक थे।

उस समय भारत के पास इतनी ही विदेशी मुद्रा बची थी कि महज 3 सप्ताह के आयात के खर्चे भरे जा सकते थे भारत कर्जों की किस्तें चुकाने में असफल हो रहा था. देश का सोना बिक रहा था।

हालांकि तब नरसिम्हा राव की सरकार ने आर्थिक उदारीकरण जैसे बड़े कदम उठाकर देश को संकट से बाहर निकाला. दूसरी बार 2008 में भारत को इस मोर्चे पर चुनौतियों का सामना करना पड़ा- उस संकट के लिए बाहरी फैक्टर जिम्मेदार थे।

तब भारत में आर्थिक मंदी तो नहीं आई थी, लेकिन अमेरिका समेत अन्य देशों के संकट से भारत अछूता नहीं रह पाया था–मौजूदा संकट की बात करें तो भारत के ऊपर मंदी का सीधा जोखिम नहीं है।

हालांकि अमेरिका, यूरोप और चीन जैसी अर्थव्यवस्थाओं का मंदी में फंसना लगभग तय लग रहा है। यह ऐसे समय हुआ है, जब ग्लोबल सप्लाई चेन के ऊपर रूस-यूक्रेन जंग का बुरा असर पड़ रहा है। एनालिस्ट इस हालात को ग्रेट डिप्रेशन के समय की स्थितियों से  देख रहे हैं। दुनिया ने तब भी महामारी और विश्व युद्ध का एक साथ सामना किया था।

 

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