24 जनवरी को माघ माह की अमावस्या है जिसे की मौनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है, साल में सिर्फ एक बार सूर्य और चन्द्रमा मकर राशि में आते है इसलिए ही इस दिन मौन धारण करने का बड़ा महत्त्व है, यह अमावस्या इसलिए भी ख़ास है क्यूंकि इसी दिन शनि देव धनु राशि से निकलकर अपनी खुद की राशि मकर में आ रहे है।
मकर राशि में सूर्य शनि की युति 13 फरवरी तक रहने वाली है क्यूंकि इस दिन सूर्य कुम्भ राशि में प्रवेश कर जायेगे वही शनि अगले ढाई साल तक मकर राशि में ही रहने वाले है, आपको बता दे कि शनि और सूर्य को वैदिक ज्योतिष में एक दूसरे का शत्रु माना जाता है जबकि ये पिता पुत्र है।
दरअसल ज्योतिष में सूर्य और शनि दोनों ग्रह एक दूसरे के शत्रु है, सूर्य मेष राशि में उच्च होते है लेकिन इसी राशि में शनि नीच हो जाते है, शनि तुला राशि में उच्च होते है तो सूर्य इस राशि में नीच हो जाते है वही अगर जन्म के समय शनि सूर्य की युति हो तो जातक को जीवन में सफलता के लिए कड़ा परिश्रम करना पड़ता है वही उसका पिता से संबंध भी मधुर नहीं रहता और उसके पिता को भी स्वास्थ्य संबंधी परेशानी आती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य और शनि एक दूसरे के पिता पुत्र है लेकिन ये शत्रु है और इसके पीछे एक रोचक कथा है, दरअसल सूर्यदेव का विवाह त्वष्टा की पुत्री संज्ञा के साथ हुआ लेकिन सूर्य देव चूकि ऊर्जा के कारक है तो वो उनका तेज सहन नहीं कर पाती थी।
कालांतर में सूर्य और संज्ञा से 3 संतानों का जन्म हुआ, वैवस्त मनु, यम और यमी ये तीन संतानें उन्हें प्राप्त हुई लेकिन इसके बाद सूर्य देव के साथ रहना उनके लिए असहनीय हो गया और एक दिन उन्होंने निर्णय लिया कि वो अपनी परछाई को उनके पास छोड़ कर चली जाएगी।
इसके बाद सूर्य देव छाया के साथ रहने लगे और उन्हें ज़रा भी इस बात का आभास नहीं हुआ कि वो संज्ञा के साथ नहीं है और उसके बाद उन्होनें सावर्ण्य मनु, तपती, भद्रा को जन्म दिया, उसके बाद छाया के गर्भ में शनि देव थे लेकिन छाया बहुत अधिक पूजा पाठ और उपासना करती थी, वो इतनी साधना करती थी कि उनका शरीर धीरे धीरे कमजोर होकर काला पड़ गया।
जब भगवान सूर्य अपने पुत्र को देखने पत्नी छाया से मिलने गए, तब शनि ने उनके तेज के कारण अपने नेत्र बंद कर लिए, इसके बाद सूर्य देव ने जाना कि उनका पुत्र तो काला है और इसके बाद उसे अपनाने से इंकार करते हुए छाया पर आरोप लगाया कि यह उनका पुत्र नहीं हो सकता और इसी भ्रम के कारण उन्होंने अपनी पत्नी को त्याग दिया जिसके कारण शनि देव अपने ही पिता से बैर भाव रखने लगे।
जब सूर्य देव ने छाया को त्याग दिया तो शनि देव क्रुद्ध हो गए और उन्होंने भगवान शंकर की कठोर तपस्या की, इससे प्रसन्न होकर शिव ने जब उन्हें वरदान मांगने को बोला तो उन्होंने शक्तिशाली व पूज्य होने का वरदान मांगा, इसके बाद शिव ने उन्हें श्रेष्ठ स्थान पाने के साथ ही सर्वोच्च न्यायाधीश और दंडाधिकारी बना दिया।
इसी के बाद साधारण मानव तो क्या बल्कि देवता, असुर, सिद्ध, विद्याधर, गंधर्व व नाग भी शनि के नाम से भयभीत रहते है लेकिन ये तो न्याय प्रिय ग्रह है, शनि सदैव मनुष्य को उनके कर्मों के हिसाब से फल देते है और ईमानदार, निष्ठावान पुरुष को सदैव अथाह संपत्ति देकर उसका भला करते है।