गुप्त नवरात्रों में दस महाविद्याओं की पूजा की जाती है जिसमें से काली के बारे में हम आपको पिछले लेख में बता चुके है, और आज इस लेख में हम बात करने वाले है दूसरी महाविद्या तारा देवी के बारे में जिनकी सेवा करने से मनुष्य को समस्त सिद्धियां प्राप्त होती है।
तारा देवी के बारे में दो कथाएं प्रचलित है, एक कथा के अनुसार वो सती की बहन है, माता सती राजा दक्ष की पुत्री थीं। राजा दक्ष की और भी पुत्रियां थीं जिसमें से एक का नाम तारा हैं। तारा एक महान देवी हैं, तारने वाली कहने के कारण माता को तारा भी कहा जाता है।
यह गुप्त नवरात्रि की दूसरी शक्ति हैं। आद्य शक्ति हैं। महाविद्या हैं। महादेवी हैं। मां के अमृतमयी दूध की शक्ति हैं, दरअसल यह संदर्भ दूसरी कथा को दर्शाता हैं, एक बार भगवान विष्णु के कहने पर देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन करने पर सहमति हुई, जिसमे हलाहल विष भी निकला और इसे शिव ने ग्रहण कर लिया।
उसके बाद भी उनके शरीर का दाह रुकने का नाम नही ले रहा था, इसलिये दुर्गा ने तारा मां का रूप लिया और भगवान शिवजी ने शावक का रूप लिया. फिर तारा देवी उन्हे स्तन से लगाकार उन्हे स्तनों का दूध पिलाने लगी. उस वात्सल्य पूर्ण स्तंनपान से शिवजी का दाह कम हुआ. लेकिन तारा के शरीर पर हलाहल का असर हुआ जिसके कारण वह नीले वर्ण की हो गयी.
तारा देवी को मूलत: तांत्रिकों की देवी बोला जाता है, तारा रूपी देवी की साधना करना तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक माना गया है। जो भी साधक या भक्त माता की मन से प्रार्धना करता है उसकी कैसी भी मनोकामना हो वह तत्काल ही पूर्ण हो जाती है। शत्रुओं का नाश करने वाली सौन्दर्य और रूप ऐश्वर्य की देवी तारा आर्थिक उन्नति और भोग दान और मोक्ष प्रदान करने वाली हैं।
तारा देवी की पूजा रात्रि को की जाती है, उसके गले मे भी खोपडियों की मुंड माला है. साधक का रक्षण स्वयमं माँ करती है इसलिये वह आपके शत्रूओंको जड से खत्म कर देती है. सबसे पहले महर्षि वशिष्ठ ने तारा की आराधना की थी। भगवती तारा के तीन स्वरूप हैं:- तारा , एकजटा और नील सरस्वती।
तारापीठ पश्चिम बंगाल के प्रसिद्ध पर्यटन और धार्मिक स्थलों में से एक है। यह पीठ पश्चिम बंगाल के बीरभूम ज़िला में स्थित है। यह स्थल हिन्दू धर्म के पवित्रतम तीर्थ स्थानों में गिना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि यहां पर देवी सती के नेत्र गिरे थे।
तारापीठ मंदिर का प्रांगण श्मशान घाट के निकट स्थित है, इसे ‘महाश्मशान घाट’ के नाम से जाना जाता है। इस महाश्मशान घाट में जलने वाली चिता की अग्नि कभी बुझती नहीं है। यहाँ आने पर लोगों को किसी प्रकार का भय नहीं लगता है। इस स्थान को नयनतारा भी बोला जाता है।
तारा के सिद्ध साधक के बारे में कहा जाता है कि भगवती तारा अपने साधक को स्वार्णाभूषणों का उपहार देती हैं। तारा महाविद्या दस महाविद्याओं में एक श्रेष्ठ महाविद्या हैं। तारा दीक्षा को प्राप्त करने के बाद साधक को जहां आकस्मिक धन प्राप्ति के योग बनने लगते हैं, वहीं उसके अन्दर ज्ञान के बीज का भी प्रस्फुटन होने लगता है।