भागवतम के 10वे स्कंध में भगवान श्री कृष्ण की अनेक लीलाओं का वर्णन है, उनसे जुड़ी हर कथा भागवतम में मौजूद है और उन्ही कथाओं में से एक बहुत प्रसिद्द कथा है जरासंध की कथा, कृष्ण के सबसे बड़े शत्रु थे उनके मामा कंस, जिन्होंने उनकी माँ को बंदी बनाया था। लेकिन कंस के बाद अगर कोई कृष्ण का कोई सबसे बड़ा शत्रु था तो वो था जरासंध।
दरअसल वह मगध का सम्राट था और उसे दुनिया के सबसे शक्तिशाली सम्राटों में गिना जाता है। उसकी सबसे बड़ी खासियत यह थी की वो मरता नहीं था। उसने 100 के करीब बड़े राजाओं को बंदी बनाया हुआ था। जरासंध ने 18 बार मथुरा पर हमला किया था लेकिन हर बार कृष्ण उसे नहीं मारते थे और उसका कारण था उसके जन्म का रहस्य।
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दरअसल जरासंध के पिता बृहद्रथ मगध के सम्राट थे और उनकी दो रानियां थी, जब उन्हें कोई संतान नहीं हुई तो महात्मा चण्डकौशिक ने उन्हें एक फल दिया लेकिन राजा यह पूछना भूल गए की ये किसी एक रानी को खाना है या दोनों को ? स्नेह वश उन्होंने दोनों रानियों को वह फल दे दिया और समय आने पर आधे आधे शिशु दोनों के गर्भ से पैदा हुए। घबराकर राजा उसे जंगल में छोड़ आये जहां जरा नाम की राक्षसी ने उन्हें जोड़कर राजा को दिया, इसलिए उसका नाम ज़रासंध हुआ, यानी की ज़रा के द्वारा जोड़ा गया हो जो, वो जरासंध।
इसी में उसकी मृत्यु का राज़ छिपा था और कोई इसे नहीं समझता था और यही कारण था की ये मरता नहीं था और धीरे धीरे जरासंध दुनिया का सबसे क्रूर सम्राट हो गया, अपनी दोनों बेटियों की शादी उसने कंस से की तो जरासंध कंस का ससुर भी था। जब कान्हा जी ने कंस को मार दिया तो जरासंध ने कृष्ण का वध करने की कसम खा ली थी। जब पांडव राजसूय यज्ञ करने की सोच रहे थे तो कृष्ण ने विचार किया की अब जरासंध का वध करने का उचित समय है।
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कृष्ण ने पांडवों को तैयार किया और ब्राह्मण वेश में जरासंध के पास पहुंच गए, वार्तालाप के बाद वह समझ गया की ये पांडव हैं और कृष्ण ने भी अपना वास्तविक परिचय देकर उसे युद्ध के लिए ललकारा, लेकिन जरासंध ने सबसे युद्ध करने से मना कर दिया, चूंकि जरासंध को मल्ल युद्ध पसंद था तो उसने भीम को चुना, उसने कृष्ण ने कहा की मेरी इच्छा है भीम मुझसे युद्ध करे।
बस फिर क्या था, जरासंध को पता था की भीम उसे नहीं मार सकता लेकिन वो ये भूल गया कि कृष्ण को उसके जन्म का राज़ पता है। कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा से 13 दिन तक दोनों लड़ते रहे, अब इन 13 दिनों में कई बार ऐसे मौके आये जब भीम जरासंध को पकड़ कर उसके टुकड़े करते लेकिन वो फिर जुड़ जाता। भीम अब थकने लगे थे वही जरासंध को तो मज़ा आ रहा था। आख़िरकार जब कृष्ण जी को यह लगा की अब युद्ध लंबा जा रहा है तो उन्होंने एक तिनके को उठाकर उसके दो टुकड़े करकर विपरीत दिशाओं में फ़ेंक दिए। भीम इशारा समझ गया।
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इस बार भीम ने जब टुकड़े किये तो दोनों टुकड़ों को उन्होंने विपरीत दिशा में फ़ेंक दिया जिससे वो जुड़ ही नहीं पाए। यह कांसेप्ट वैज्ञानिक आधार पर चुम्बक के उदाहरण से समझा जा सकता है, अगर आप चुंबक के दो टुकड़े कर उसे विपरीत करके रख दे तो वो नहीं जुड़ पाएंगे क्यूंकि नार्थ पोल और नार्थ पोल कभी नहीं जुड़ सकते। यही कारण था की जरासंध मरता नहीं था। यह आख्यान इसका भी प्रमाण है की भागवतम पूर्ण रूप से वैज्ञानिक है और उस वक़्त की हर घटना को आज भी हम फिजिक्स से समझ सकते है।