रामायण में जब हनुमान जी लंका को जलाकर राम जी के पास आये तो तय हो गया की सीता को वापिस लाने के लिए अब युद्ध करना ही होगा।
उधर जब रावण को जब इस बात का अहसास हुआ कि एक बंदर आकर लंका जला गया तो उसे आपातकाल मीटिंग रखी क्यूंकि रावण ने ही हनुमान जी हंसी उड़ाते हुए पूंछ में आग लगवाई थी।
उस मीटिंग में सारे सेनापति, उसका पुत्र इंद्रजीत और भाई विभीषण भी था। जैसे ही रावण ने अपने सभासदों से पूछा की एक बंदर आकर लंका जला गया तो अब अगर उसका स्वामी युद्ध करने आ गया तो ? आगे क्या किया जाए !
इसके उत्तर में सभी सभासद डर के मारे रावण की बड़ाई करने लगे, कुछ कहने लगे की आपने तो इंद्र तक को झुका दिया तो ये वानर और दो वनवासी आपका क्या बिगाड़ सकते है ? वही इंद्रजीत ने भी युद्ध की नौबत आने पर सबको मारने की बात कही।
देखा जाए तो उस सभा में किसी ने रावण को सही सलाह नहीं दी ! एक कर्मचारी का काम होता है अपने स्वामी को सही और सटीक जानकारी देना ! एक तरफ हनुमान थे जिन्होंने पूरी लंका का निरीक्षण किया और राम जी को सही जानकारी दी।
दूसरी और रावण के लोग थे जो खतरे को आंकना तो दूर उससे पल्ला झाड़ रहे थे। उनको लग रहा था कि एक बंदर ही तो था हमारा क्या कर लेगा ?
वही दूसरी और जब विभीषण ने रावण को सही और सच्ची सलाह दी, तो उसे लात मारकर दरबार से निकाल दिया गया और अपमानित किया गया।
रावण का इस तरह अपने भाई की सलाह को नज़रअंदाज़ करना और उसे अपमानित करना उसे भारी पड़ा और उसी के द्वारा नाभि में अमृत कुंड की बात उजागर हुई और रावण का वध हुआ।
इस पुरे प्रसंग से हम यह सीख सकते है कि मनुष्य को चापलूसों पर नहीं बल्कि अपनी खुद की बुद्धि पर अधिक विश्वास होना चाहिए और धर्म परायण व्यक्ति की बात को कभी भी हल्के में नहीं लेना चाहिए।