रिपोर्ट: सत्यम दुबे
नई दिल्ली: आचार्य चाणक्य का नाम आते ही लोगो में विद्वता आनी शुरु हो जाती है। आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति और विद्वाता से चंद्रगुप्त मौर्य को राजगद्दी पर बैठा दिया था। इस विद्वान ने राजनीति,अर्थनीति,कृषि,समाजनीति आदि ग्रंथो की रचना की थी। जिसके बाद दुनिया ने इन विषयों को पहली बार देखा है। आज हम आचार्य चाणक्य के नीतिशास्त्र के उस नीति की बात करेंगे, जिसमें उन्होने बताया है कि पिता के समान आदर पाने के हकदार होते हैं ये चार लोग…
आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में बताया है कि ज्ञान देने वाले गुरू का स्थान हमेशा पिता जितना होता है क्योंकि उसका दिया हुआ ज्ञान ही हमारा भविष्य संवारता है। गुरू हमेशा अपने शिष्य को एक पिता की तरह सही मार्ग दिखाता है, जिसकी बदौलत व्यक्ति भविष्य में सही और गलत के भेद को समझता है। इसलिए गुरू को सदैव पिता के समान सम्मान देना चाहिए।
वहीं उन्होने पिता के समान आदर पाने वाले में यज्ञोपवीत कराने वाले पुरोहित को बताया है। उन्होने कहा है कि धार्मिक रूप से 16 संस्कारों में से एक है। धार्मिक शास्त्रों में कहा गया है कि यज्ञोपवीत एक तरह से व्यक्ति का दूसरा जन्म होता है। इसलिए उन्हें पितातुल्य सम्मान दें। इसके बाद उन्होने बताया है कि घर से दूर होने पर जो भी व्यक्ति आपके रहने और खाने पीने की व्यवस्था आपके लिए करता है, वो आपके पिता के समान हो जाता है। ऐसे व्यक्ति को हमेशा अपने पिता की तरह ही देखें।
यदि हम किसी बड़े संकट में हैं और ऐसे में कोई व्यक्ति हमारे प्राण बचाता है तो ये एक तरह से हमारा दूसरा जीवन कहलाता है। ऐसे व्यक्ति को कभी नहीं भूलना चाहिए और उन्हें हमेशा अपने पिता की तरह ही सम्मान देना चाहिए।