तारा देवी को मूलत: तांत्रिकों की देवी बोला जाता है, तारा रूपी देवी की साधना करना तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक माना गया है।
जो भी साधक या भक्त माता की मन से प्रार्धना करता है उसकी कैसी भी मनोकामना हो वह तत्काल ही पूर्ण हो जाती है।
शत्रुओं का नाश करने वाली सौन्दर्य और रूप ऐश्वर्य की देवी तारा आर्थिक उन्नति और भोग दान और मोक्ष प्रदान करने वाली हैं।
तारा देवी की पूजा रात्रि को की जाती है, उसके गले मे भी खोपडियों की मुंड माला है. साधक का रक्षण स्वयमं माँ करती है इसलिये वह आपके शत्रूओंको जड से खत्म कर देती है।
सबसे पहले महर्षि वशिष्ठ ने तारा की आराधना की थी। भगवती तारा के तीन स्वरूप हैं:- तारा , एकजटा और नील सरस्वती।
तारापीठ पश्चिम बंगाल के प्रसिद्ध पर्यटन और धार्मिक स्थलों में से एक है। यह पीठ पश्चिम बंगाल के बीरभूम ज़िला में स्थित है।
यह स्थल हिन्दू धर्म के पवित्रतम तीर्थ स्थानों में गिना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि यहां पर देवी सती के नेत्र गिरे थे।
तारा के सिद्ध साधक के बारे में कहा जाता है कि भगवती तारा अपने साधक को स्वार्णाभूषणों का उपहार देती हैं। तारा महाविद्या दस महाविद्याओं में एक श्रेष्ठ महाविद्या हैं।
तारा दीक्षा को प्राप्त करने के बाद साधक को जहां आकस्मिक धन प्राप्ति के योग बनने लगते हैं, वहीं उसके अन्दर ज्ञान के बीज का भी प्रस्फुटन होने लगता है।