22 मई को अमावस्या है। इस दिन वट सावित्री अमावस्या तथा शनि जयंती मनाई जाएगी। कृष्ण पक्ष में चंद्रमा का आकार घटता है जबकि अमावस्या पर चांद पूरी तरह से दिखाई नहीं देता है।
पूर्णिमा के दिन चांद बहुत बड़ा और रोशनी से भरा हुआ होता है। अमावस्या तिथि पर सूर्य और चंद्रमा एक राशि में होते हैं। ऐसे में 22 मई को सूर्य और चंद्रमा वृषभ राशि में एक साथ रहेगा।
शनि जयंती को शनि अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है. भगवान शनि भगवान सूर्यदेव के पुत्र हैं। इस दिन शनिदेव की पूजा की जाती है।
विशेषकर शनि की साढ़े साती, शनि की ढ़ैय्या आदि शनि दोष से पीड़ित जातकों के लिये इस दिन का महत्व बहुत अधिक माना जाता है।
शनि आधुनिक युग के न्यायाधीश हैं और न्याय हमेशा अप्रिय होता है इसलिए उसे क्रूर समझते हैं लेकिन शनि न्यायप्रिय देवता है। बुरा करने वालों को शनि तमाम तरह के कष्ट देते हैं।
कुत्तों की सेवा करने वालों से भगवान शनि हमेशा प्रसन्न होते हैं। कुत्तों को खाना देने वालों और उनको कभी ना सताने वालों के शनिदेव सभी कष्ट दूर करते हैं।
जो मछली खाते नहीं है बल्कि मछलियों को खाना खिलाते हैं उनसे शनि हमेशा प्रसन्न रहते हैं। शनि की कृपा पाने के लिए पीपल वृक्ष की परिक्रमा करें।
प्रात:काल मीठा दूध वृक्ष की जड़ में चढ़ाएं तथा तेल का दीपक पश्चिम की ओर बत्ती कर लगाएं और ‘ॐ शं शनैश्चराय नम:’ मंत्र का जाप करे।