मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के रहने वाले जेपी नड्डा का जन्म वैसे तो बिहार के पटना में 2 दिसंबर 1960 को हुआ था। लेकिन तब किसी ने सोचा नहीं था कि जेपी कभी देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष बनेंगे। लेकिन आज यह किसी हकीकत से कम नहीं है जब पार्टी ने उन्हें अध्यक्ष पद से नवाजा है। आज उनके नाम की चर्चा चारों तरफ है, क्योंकि नड्डा बीजेपी राष्ट्रीय राजनीति का हिस्सा हैं। पार्टी के कार्यकर्ता उनकी तरफ आशान्वित होकर देख रही है उनसे पार्टी के कार्यकर्ताओं को काफी उम्मीदें है और हो भी क्यों नहीं, क्योंकि बीजेपी ने उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है।
साल 1993 में पहली बार हिमाचल प्रदेश विधानसभा में पहुचने वाले जेपी नड्डा ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि, जिस पार्टी के झंडे की बदौलत वो विधानसभा में पहुंचे हैं, कभी उसी पार्टी के वो अध्यक्ष बन जाएंगे। लेकिन वक्त ने करवट बदली और फिर सबकुछ बदल गया। आज लोग उन्हें एक ऐसी शख्सियत के रूप में देख रहे हैं जो कभी अमित शाह में देखा करते थे। लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए जेपी नड्डा ने काफी मेहनत की है। पार्टी के अलग-अलग पदों पर रहने के दौरान तमाम तरह के खट्टे- मीठे अनुभवों का आनंद लेते हुए वो आज पार्टी के नए अध्यक्ष बन गए हैं। इसकी शुरूआत उसी वक्त हो गई थी जब साल 2019 में पार्टी दूसरी बार सत्ता में भारी बहुमत से लौटी और अमित शाह केंद्रीय गृहमंत्री बनाए गए। उसी वक्त ये अटलकें लगने लगी थी कि अब पार्टी को नया अध्यक्ष मिलेगा। सरकार के गठन के कुछ समय बाद ही पार्टी में काफी चर्चा हुई और फिर जेपी नड्डा का नाम पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष बनाने को लेकर सामने आया। तब से लेकर अबतक जेपी नड्डा अमित शाह की छत्रछाया में काम करते रहे। लेकिन आज का दिन उनकी जिंदगी के लिए सबसे खुशनुमा दिन है जब बीजेपी ने उन्हें पार्टी का अध्यक्ष बनाया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में अमित शाह के शामिल होने के बाद ही जेपी नड्डा को पार्टी की कमान सौंप दी गई थी। उसी वक्त ये तय हो गया था कि अमित शाह अगले 6 महीने तक ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर बनें रहेंगे। क्योंकि अमित शाह के गृह मंत्रालय जैसे अहम विभाग संभालने के कारण पार्टी पर ध्यान देना कम ही था। ऐसे में जेपी नड्डा अमित शाह के साथ मिलकर तबतक बतौर कार्यकारी अध्यक्ष पार्टी के कामकाज को संभालते रहेंगे। ऐसे में नड्डा ही पार्टी के मुख्य कर्ताधर्ता होंगे, लेकिन पार्टी के हर फैसले पर अमित शाह की नजर रहेगी।
लेकिन केंद्र में सरकार के गठन के बाद 6 महीने के भीतर हुए राज्य विधानसभा के चुनावों के नतीजे बीजेपी के लिए अनुकूल नहीं रही। लेकिन अब, जब दिल्ली में चुनावों की घोषणा हो चुकी है और जेपी नड्डा बीजेपी के अध्यक्ष पद की कमान संभाल ली हैं तो यह कहना लाजिमी है कि नड्डा के लिए चुनौतियों का दौर शुरू हो गया है।
अमित शाह ने अपने पूरे कार्यकाल में बीजेपी को जिस मुकाम तक पहुंचाया उसे बरकरार रखना जेपी नड्डा के लिए चुनौती भरा रहेगा। पार्टी को शीर्ष पर बनाए रखने के साथ-साथ खुद को एक सशक्त और दमदार अध्यक्ष के रूप में पेश करना होगा। सभी की नजर इसपर रहेगी कि वह इस मकसद में कितना कामयाब हो पाते हैं। बतौर अध्यक्ष पद पर रहते हुए अमित शाह के दौर में बीजेपी को जिस तरह की बंपर कामयाबी मिली थी उसे बनाए रखना नड्डा के लिए चुनौतीपूर्ण है।
केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद 5 राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए, जिनमें दिल्ली को छोड़कर तीन राज्य ऐसे थे जहां बीजेपी खुद ही सत्ता में थी। ये तीन राज्य महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड थे। जेपी नड्डा के सामने इन तीनों राज्यों में बीजेपी की सत्ता पर पकड़ बनाए रखने की थी लेकिन हरियाणा को छोड़कर दो राज्य बीजेपी के हाथ से निकल गए। हरियाणा में भी बड़ी ही मुश्किल से बीजेपी ने सत्ता में वापसी की। जम्मू-कश्मीर से 370 और 35A हटाने के बाद केंद्र की सरकार ने उसे तीन केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया। अब दिल्ली विधानसभा का चुनाव सामने है जब पार्टी उनकी ताजपोशी की है। ऐसे में नड्डा के लिए इस साल की सबसे बड़ी चुनौती दिल्ली विधानसभा को जीतकर खुद को साबित करना है।
दिल्ली में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। तमाम राजनीतिक पार्टियों ने दिल्ली को जीतने के लिए कमर कस ली है। बीजेपी ने पिछली बार सत्ता में लौटने की भरपूर कोशिश की थी, लेकिन अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी ने बीजेपी के सपने को तोड़ दिया था। हलांकि साल 2019 के लोकसभा के चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा रहा औऱ दिल्ली की सातों लोकसभा की सीटों को जीतने में कामयाबी हासिल की थी। जिससे नड्डा के लिए पॉजिटिव माना जाएगा। लेकिन अब जब दिल्ली में 8 फरवरी को वोटिंग होनी है और इस बीच जेपी नड्डा का ताजपोशी होना कई मायने में अहम है। क्योंकि नड्डा को दिल्ली जीताकर खुद को संगठन के सामने साबित भी करना है।
हलांकि साल 2014 के लोकसभा के चुनावों में भी ऐसा ही हुआ था जब बीजेपी दिल्ली की सभी 7 सीटों पर अपना परचम लहराया था लेकिन जब कुछ महीने के बाद विधानसभा का चुनाव हुआ तो, बीजेपी दिल्ली की 70 में से सिर्फ 3 सीटें ही जीत सकी औऱ बाकि 67 सीटें केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के खाते में चली गई और वह दिल्ली की सत्ता हथियाने में कामयाब रही।
इस बार भी बीजेपी ने दिल्ली की सभी सातों लोकसभा की सीटों पर जीत का पताका लहराया है, लेकिन बीजेपी के नए अध्यक्ष जेपी नड्डा को यह सुनिश्चित करना होगा कि 2020 की शुरूआत वो दिल्ली विधानसभा में विजयी होने के साथ करें। इसके लिए उन्हें तमाम स्ट्रेटेजी पर काम करना होगा क्योंकि केजरीवाल को चुनौती देना आसान नहीं है। दूसरी तरफ नड्डा के लिए दिल्ली का विधानसभा चुनाव जीतना किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगा। क्योंकि अगर पार्टी यहां हार का सामना करती है तो संगठन में विरोध होना शुरू हो जाएगा।
बिहार में अपने अलाएंस पार्टनर जेडीयू के साथ सत्ता पर काबिज बीजेपी के सामने गठबंधन को बनाए रखने की बड़ी चुनौती है। क्योंकि बिहार में एनडीए को लोकसभा के चुनावों में जोरदार जीत मिली थी। लेकिन कई मोर्चों पर नीतीश कुमार का केंद्र की सरकार के साथ रिश्ते सामान्य नहीं है। जेडीयू का CAA और NRC को लेकर भी केंद्र की सरकार से रूख अलग है जिससे निपटना जेपी नड्डा के लिए बड़ी चुनौती होगी। हलांकि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने वैशाली में CAA जागरुकता अभियान की रैली में कह चुके हैं कि जेडीयू के साथ उनका गठबंधन सामान्य है और नीतीश कुमार की अगुआई में वो अगला विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे। क्योंकि राज्य में अगले कुछ महीनों बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं और यहां पर भी नड्डा के सामने एनडीए के घटक दलों को बनाए रखने की चुनौती रहेगी।
जेपी नड्डा को दक्षिण भारत के लिए भी नई रणनीति बनानी होगी, क्योंकि पिछले लोकसभा के चुनावों में बीजेपी को दक्षिण भारत से काफी उम्मीदें थी कि यहां के राज्यों से उनके खाते में कुछ सीटें आएंगी। लेकिन तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और केरल में बीजेपी को निराशा हाथ लगी। आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली, जबकि बीजेपी ने इन राज्यों में जीत के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था, लेकिन निराशा हाथ लगी। अब नड्डा के सामने दक्षिण में सीटें जीतने के लिए नए सिरे से रणनीति बनानी होगी।
बड़बोले नेताओं पर लगाम लगाने की चुनौती। जेपी नड्डा के लिए अध्यक्ष बनने के बाद एक बड़ी चुनौती यह भी है कि, पार्टी में जो बड़बोले नेता हैं उनपर लगाम लगाना। क्योंकि ये बड़बोले नेता समय-समय पर पार्टी को संकट में डालने का काम करते हैं। जिनमें गिरिराज सिंह, साध्वी प्रज्ञा, साक्षी महाराज और कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेताओं पर अंकुश लगाना बड़ी चुनौती है।