{ श्री अचल सागर जी महाराज की कलम से }
इस संसार में जो कुछ भी हम देख रहे है वो सब भगवान् की माया से प्रभावित है। सिर्फ एक ही शक्ति इसका संचालन कर रही है। उसका ना कोई रूप है ना कोई रंग है ना कोई आकार है। वो तो सिर्फ निराकार है।
वो दिव्य है, अलौकिक है। संसार के कण कण में वही तो समाया हुआ है। संसार के अलग अलग समुदाय अपने अपने हिसाब से उसे अलग अलग नामों से जानते है और उसकी पूजा करते है।
कुरान भी उसकी है और वेद भी उसके है। दिवाली भी उसकी है और ईद भी उसकी है। हम तो बस मानव होने के नाते ये भेद नहीं समझ पाते है।
यही हम सब एक है तो हम क्यों लड़ते रहते है ? उसकी कृपा तो सब पर बरसती है। हवा पानी आकाश भूमि किसी में कोई भेद नहीं। लेकिन हम क्यों भेद करते है ?
दरअसल जो ईमानदारी से उस ईश्वर को समझता है वो ना किसी रक्तपात को समझता है और ना ही किसी अपराध को कर सकता है।
उस परम् पिता को जो जान जाता है वो तो बस सिर्फ उसके गुण गाते हुए सारे प्राणियों से प्रेम करता है। जब उसे सत्य की जिज्ञासा होती है तो वो ईश्वर से जुड़ जाता है और सबका कल्याण करता है।