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रामायण का प्रेरक प्रसंग : अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करना भरत से सीखे

By RNI Hindi Desk 
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रामायण एक ऐसा काव्य है जिसकी सीख हम सबके लिए प्रेरणा का काम कर सकती है। आज के समय में देखा जाए तो लोग अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन ठीक से नहीं कर पाते है और काम समय से नहीं होने पर बहाने मारते है। आज यह समस्या आम हो गई है और आने वाले समय में यह एक बहुत बड़ी समस्या बन सकती है।

अपनी जिम्मेदारी को समय से पूरा करना बहुत जरुरी है। रामायण के एक प्रसंग से इसको सीखा और समझा जा सकता है। दरअसल जब भरत अयोध्या में नहीं थे उसी समय उनके बड़े भाई राम को राजपाट दिया जाएगा ऐसा निर्णय हुआ।

उनकी माँ कैकेयी ने मंथरा की बातों से प्रभावित होकर राम जी के लिए 14 साल का वनवास मांग लिया और उन्हें महल से बाहर चौदह साल तक वन में रहने की आज्ञा दी और अपने पुत्र भरत के लिए राज्य मांग लिया।

जब भरत को ये पता चला तो वो बहुत क्रुद्ध हुए और उन्होंने अपनी माँ को बड़ा डांटा ! इसके बाद वो खुद सेना लेकर राम जी को वन में लेने चले लेकिन राम जी के लिए पिता की आज्ञा प्रबल थी।

उन्होंने भरत के प्रेम को स्वीकार किया और अपनी चरण पादुका उन्हें दे दी ताकि वो उन्हें सिंहासन पर रख सके और राज्य चला सके। इसके बाद भी भरत महल में नहीं रहे। उन्होंने राज्य के बाहर एक कुटिया का निर्माण किया और चौदह साल तक सुख सुविधा को नहीं भोगा।

इस समय भी कोई अयोध्या का काम ना ही प्रभवित हुआ और ना ही राज्य पर कोई संकट आया ! ना ही किसी ने आक्रमण किया और ना ही किसी ने विद्रोह किया। इस पुरे प्रसंग से हम एक बात सीख सकते है की अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करने की इच्छा हो तो वो कही से भी निभाई जा सकती है।

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